कमिश्नर श्री वर्मा ने समझाई पूर्वोत्तर राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था

कमिश्नर श्री अभय वर्मा ने बताया कि पूर्वोत्तर राज्यों के 10 स्वायत्त जिला परिषदों के मुख्य कार्यकारी मजिस्ट्रेटों ने 125वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित करने की मांग रखी। वे आज पंडित लज्जाशंकर झा माडल हाई स्कूल जबलपुर पर ज्ञानाश्रय निःशुल्क कोचिंग क्लासेस में छात्र छात्राओं को पूर्वोत्तर राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था को समझा रहे थे।

कमिश्नर श्री वर्मा ने कहा कि हाल ही में, पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के 10 स्वायत्त जिला परिषदों के मुख्य कार्यकारी मजिस्ट्रेटों ने केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाकात की और 125वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित करने की मांग रखी। यह विधेयक 2019 से राज्यसभा में लंबित है। 125वें संविधान संशोधन विधेयक में प्रस्तावित संशोधन - इस विधेयक का उद्देश्य संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत स्वायत्त परिषदों को अधिक वित्तीय कार्यकारी और प्रशासनिक शक्तियां प्रदान करना है। प्रस्ताव में मौजूदा जिला और क्षेत्रीय परिषदों के साथ-साथ ग्राम और नगर परिषदों का निर्माण करना शामिल है। विधेयक में ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग गांवों या गांवों के समूहों के लिए ग्राम परिषदों की स्थापना की बात कही गई है, जबकि प्रत्येक जिले के भीतर शहरी क्षेत्रों में नगर परिषदों की स्थापना की जाएगी। जिला परिषदों को हानि से संबंधित अधिनियम बनाने, शक्तियों के विकास के नियम, राज्य वित्त आयोग, परिषदों के चुनाव आदि का अधिकार होगा।

उन्होंने बताया कि स्वायत्त जिला परिषदें संविधान की छठी अनुसूची के अनुच्छेद 244 के तहत पूर्वोत्तर भारत में बनाई गई संवैधानिक व्यवस्था हैं, जिसका उद्देश्य जनजातीय लोगों की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करना और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करना है। वर्तमान में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं, जिनमें असम, मेघालय और मिजोरम में 3-3 और त्रिपुरा में एक है।इसके अलावा उन्होंने बताया कि हाल ही में अरावली में भूमि उपयोग की गतिशीलता पर एक हालिया वैज्ञानिक अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि पहाड़ियों के निरंतर विनाश के परिणामस्वरूप जैव विविधता के महत्वपूर्ण उल्लंघन, मृदा क्षरण और वनस्पति आवरण में कमी आई है। अरावली के संबंध में अध्ययन में रेखांकित किया गया है।जिसमे खनन क्षेत्र में वृद्धि, मानव बस्तियों में वृद्धि, वन आवरण और पहाड़ियों का नुकसान, जल निकायों पर प्रभाव, अरावली में संरक्षित क्षेत्रों का प्रभाव के बारे में जानकारी दी। अरावली पर्वतमाला के संबंध कहा कि यह गुजरात से राजस्थान होते हुए दिल्ली तक फैली हुई है। इसकी लंबाई 692 किमी और चौड़ाई 10 से 120 किमी के बीच है। यह पर्वतमाला एक प्राकृतिक हरित दीवार के रूप में कार्य करती है, जिसका 80% भाग राजस्थान में, 20% हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में स्थित है। अरावली पर्वतमाला दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित है ,जिसमे एक राजस्थान में सांभर सिरोही श्रेणी और सांभर खेतड़ी श्रेणी है जिसका विस्तार लगभग 560 किमी है। यह थार रेगिस्तान और गंगा के मैदान के बीच एक इकोटोन के रूप में कार्य करता है।

साथ ही उन्होंने न्यायालय याचिका, स्टार्लिंक परियोजना, उत्तर भारत में कपास की खेती, अंटार्कटिका में भारत का नया डाकघर, सूर्य तिलक परियोजना राम लला, कोंडा रेड्डी जनजाति के ज्ञान की संसाधनशीलता, राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) रैंकिंग 2024, बाल गंगाधर तिलक की 168वीं जयंती, पांडुलिपियों के लिए राष्ट्रीय मिशन और राष्ट्रीय संस्कृति कोष, नेटाल इंडियन कांग्रेस की 130वीं वर्षगांठ, मौलिक अधिकार के रूप में आश्रय का अधिकार, ब्लू मून, असम अभयारण्य में तेल की ड्रिलिंग इत्यादि पर विस्तार से चर्चा की। क्लास के अंत में विद्यार्थियों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब संक्षेप में देकर संतुष्ट किया गया। 

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